शिव चर्चा साहेब श्री हरींद्रानंद जी
शिव गुरु की शिष्यता =शास्त्रों में बहुत पहले कहा गया है शिव गुरु हैं .. जगतगुरु नमस्तुब्भ्याम , गुरुना गुरुवे नमः अदि बहुत सारे श्लोक हैं शिव क गुरु पद पर लेकिन आपने उनहे गुरु नहीं बनाया . ऐसा नहीं की आप शिव या महादेव से परचित नहीं हैं .मै जब झारखण्ड में डिप्टी सेक्रेटरी था तब हमारे अधीनस्त कर्मचारीगण आवदेन देते थे , मुझे देवघर जाना है . चार दिनों का अवकाश चाहिए अर्थात इससे हम इतनी पर्ची तो जरूर हो जाते हैं कि सावन के महीने में देवघर कांवर लेकर जाना है जिस शिव गुरु को कहा जा रहा है उसी से हम परिचित नहीं है ऐसा भी नहीं है। कहते हैं बाबा धाम जाना है या बाबा के घर जाना है इतना नजदीक संबंध है हमारा खानदान दर खानदान का दोनों एक ही सत्ता के नाम है ।उसी के बारे में कहा गया है कि वह गुरु है और सबसे बड़े गुरु है जगतगुरु हैं। जगतगुरु का अर्थ होता है कि जगत के प्रत्येक प्राणी का इतना अधिकार है उस पर भी कोई भी व्यक्ति उसे अपना गुरु बना सकता है ।चाहे वह समुद्र के किनारे रहने वाला हो चाहे रेगिस्तान में वह किसी भी जाति विशेष के गुरु नहीं है। किसी एक संप्रदाय के गुरु नहीं है। किसी धर्म विशेष के गुरु नहीं है इसलिए उन्हें कहा गया है कि यह जगतगुरु है इनके पास कोई शर्त नहीं है अन्य गुरु तो शर्त लगा सकते हैं।।
गुरु गो गुरु गोरखनाथ कर सकते हैं शिष्य बनना है ।तो सुरा और सुंदरी का त्याग करके आओ शिव जगतगुरु हैं वह कोई शर्त नहीं लगाते हैं ।शिष्य बनने में आप जॉब करते हैं शो करें जो खाते हैं वह खाएं शिव को गुरु बनाएं तब देखे कि लोग जो कह रहे हैं। वह बात कितनी सच है कितनी झूठ है गुरु का गुण नहीं होगा हम मानेंगे किसी गुरु अब नहीं रहे आदि गुरु का गुरु होगा तो लाभ मिलेगा क्या जाता है बाबा तो हैं। अपने ही बाबा को गुरु मानने की बात हो रही है ।हमारे बिहार और झारखंड में कहा जाता है कि चंदा मामा सबके मामा शिव घर घर के बाबा आपको मालूम है कि ज्ञान कितना महत्वपूर्ण है ज्ञान का अर्थ होता है। ज्ञान का अर्थ होता है समझ भगवान बुद्ध को पूरी की पूरी समझ आ गई थी हमारी समझ पूर्णता में नहीं है।।
मेरी पत्नी का देहांत 17 जून 2005 को हुआ कोई बदलाव नहीं आया हमारे जीवन में सब कुछ वैसा का वैसा ही है मन नहीं समझ पाया कि हम भी जाएंगे सूचना तो है।। हम लोगों को लेकिन समझ नहीं है ।जरा गौर कीजिए हमारी आपकी यात्रा कितने दिनों की है हम आप कितने दिनों के लिए यहां आए हैं यदि हमें सूचना है कि हमें एक दिन जाना है तो इतना हंगामा क्यों इतनी परेशानी क्यों है क्या हो गया है हमें इसी समझ को देते हैं गुरु जैसे-जैसे समझ आएगी मन का बोझ कम होता जाएगा जैसे-जैसे ज्ञान होगा मन शांत होने लगेगा 5000 वर्ष का इतिहास है कितनी पूजा होती है कितनी साधनाएं होती हैं इससे तो हम लोग इंसान भी नहीं बन पाए भगवान की पूजा करते हैं तो मन भगवान के जैसा होना चाहिए था ना कहां बन पाया मन वैसा कारण है कि जीवन में योग्य गुरु का अभाव है सबको पता है कि हमारे बाबा से बड़ा गुरु कोई नहीं है शिव से बड़ा गुरु कोई नहीं है तब हम शिव को ही गुरु क्यों नहीं बना रहे शिव को गुरु बनाने में कोई शर्त नहीं मुझे 20 वर्ष हो गए यह कहते हुए कि शिव को गुरु बनाइए इन्हें ग्रुप बनाने में कुछ नहीं लगता गुरु तो मन बनाएगा शिव तो हमारा आपका मन बनता है शरीर नहीं उसमें हमारे आपके वस्त्र और आभूषण काम नहीं करते हैं धन्य ध्यान की जरूरत नहीं पड़ती सिर्फ मन में इस विचार का आना ही काफी है किसी मेरे गुरु हैं और मैं उनका शिष्य हूं यही विचार कालांतर में घनीभूत होकर भाव में परिणत हो जाएगा तथा भाव जब प्रगाढ़ होगा तो प्रेम में परिणत हो जाएगा प्रेम मनुष्य का जन्मजात गुण है शिव गुरु से शिष्य का संबंध उत्तरोत्तर प्रेमा विमुख हो जाता है प्रेम शिव गुरु से शिष्य को एक मेक कर देगा मान है किसी गुरु शिष्य को अपने जैसा बनाते हैं।
।।दीदी नीलम आनंद।। |
जगतगुरु का अर्थ होता है कि-- जगत के प्रत्येक प्राणी का इतना अधिकार है उस पर कि कोई भी व्यक्ति उसे अपना गुरु बना सकता है। चाहे वह समुद्र के किनारे वाला हो चाहे रेगिस्तान में चाहे कहीं भी वह किसी जाति विशेष के गुरु नहीं है। किसी एक संप्रदाय के गुरु नहीं है किसी धर्म विशेष के गुरु नहीं है उन्हें कोई भी ग्रुप बना सकता है यह शिव गुरु है जगत के गुरु हैं।।
आइए भगवान शिव को गुरु बनाएं और तीन सूत्र का पालन करें दया *चर्चा* नमः शिवाय*।।।। आदेश साहब श्री हरिंद्रानंद जी प्रथम शिव शिष्य। ।।।।।
जिज्ञासा समाधान
प्रश्न ---शिव शिष्य का होने के लिए खानपान की कोई वर्जना आरोपित नहीं है यह नियम की भी बाधित अपूर्व रोपित नहीं है जबकि शरीर धारी गुरुओं के द्वारा खानपान की पवित्रता और यह नियम का बंधन है इस बिंदु पर कृपया प्रकाश डालने की कृपा करें। ?
उत्तर --शिव जगत के गुरु हैं वही जगत के पिता हैं ।अतः प्रत्येक व्यक्ति को उनका शिष्य होने का अधिकार है ।जगतगुरु जब शब्द का अर्थ है ।जो सारे जगत के मनुष्य का गुरु है अगर कोई शर्त होगी तो उन्हें जगतगुरु नहीं कहा जाएगा जा सकता इसलिए जगतगुरु शिव कि शिष्य ता मैं किसी प्रकार की पवित्रता यह नियम के पालन पर जोर नहीं दिया गया है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि गुरु की ओर शर्ते दी जाती हैं यहां उनकी ओर से कोई शर्त नहीं दी गई है उन्हें गुरुओं का गुरु कहा गया है कि वह किसी प्रवृत्ति या प्रकृति के मनुष्य को बिना किसी शर्त के अपना शिष्य बना सकते हैं। आज करोड़ों लोग ने बिना किसी बंधन के शिव को गुरु माना है ।और उनके जीवन की दशा और दिशा में दिखने वाले सकारात्मक कल्याणकारी परिणाम इस तथ्य की पुष्टि करता है ।कि गुरु के रूप में शिव बिना किसी शर्त के सचमुच में परिणाम दाई गुरु है।
।।। साहब श्री हरिंद्रानंद जी।।।
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